लघुकथा – दायित्व
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लघुकथा – दायित्व
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“ओह ! ये गर्मी।”
“यार आज तो तापमान 50 से ज्यादा है, जीना बेहाल कर रखा है।”
“हाँ भाई, गर्मी ने पिछले 22 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है।”
“भाई एक बात बताओ, क्या सरकार का कोई कर्त्तव्य नहीं बनता कि पर्यावरण संरक्षण के बारे में कोई ठोस कदम उठाए।”
पास ही बैठे बूढ़े दादा ने दोनों की बात सुनकर कहा – “बेटा, जिस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति अपना वोट डालकर सरकार बनाता है ताकि देश का शासन सुनियोजित ढंग से चल सके। जब हम अपनी सरकार चुन सकते हैं तो क्या हमारा ये दायित्व नहीं बनता कि प्रत्येक व्यक्ति एक पेड़ लगाकर पर्यावरण को स्वच्छ बनाकर जलवायु को जीने लायक बना सके ?
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अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा