लघुकथा- अ-कर्म
लघुकथा- अ-कर्म
उस को कहना पड़ा, “ सर ! मैं ने उन्हें समय पर डेटाबेस दे दिया था. आप के कहने पर भर भी दिया था. फिर भी उन्हों ने समय पर नहीं दिया. इस कारण डेटाबेस मुख्यालय पर समयसीमा में आप नहीं पहुंचा पाए. अब मैं उन की जगह ५० किलीमीटर दूर मुख्यालय पर जमा कराऊं ? यह मुझ से नहीं होगा.”
“ चले जाओ भाई. डेटाबेस भी दे देना. कोई और काम हो तो वो भी कर आना.”
“ मगर सर जी, यह तो गलत है. एक तो मैं उन की कक्षा पढ़ाता हूँ. वे कोई काम भी नहीं करते हैं. इसलिए उन की गलती की सजा मै क्यों भुगतू सर ?” उस ने पूरी दृढ़ता से विरोध किया, “ जिस न गलती की है सजा उसे ही मिलनी चाहिए.”
“ अरे भाई ! मेरी बात समझो. उन्हें कोई नहीं जानता है. सभी आप को जानते हैं. इसलिए मुख्यालय में डेटाबेस जमा नहीं करवाया तो बदनामी आप की होगी. आप जैसे योग्य व्यक्ति के स्कूल का डेटाबेस जमा नहीं हुआ.” जनशिक्षक के यह कहते ही उस के दिमाग में “मैं” का कद ऊँचा हो गया और न चाहते हुए उस ने डेटाबेस हाथ में ले लिया . जब कि उस के दिमाग में एक वाक्य ्हथोड़ा मार रहा था , “ बने रहो पगला, काम करेगा अगला.”
——————-
ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
पोस्ट ऑफिस के पास रतनगढ़
जिला- नीमच- ४५८२२६ (मप्र)
९४२४०७९६७५