लघुकथा~चांदी~
लघुकथा
~ चांदी ~
पार्टी में हर किसी की नज़रे आशा पर टिकी थी।हर कोई उसके नये रूप की चर्चा कर रहा था। हमेशा बंधी चोटी और साधारण सी साड़ी में नज़र आने वाली आशा आज बड़ी बड़ी कजरारी आँखे सुर्ख होंठ, कंदे से सरका पल्लू सभी को आकर्षित कर रहा था।आशा भी सालो बाद अपनी सराहना सुन बहुत खुश नज़र आ रही थी।
तभी राजू दौड़ कर आया “मम्मी मम्मी दादा जी आ रहे है पल्लू सर पर लेलो। आशा असमंजय में पड़ गई कई सालों बाद तो आज खुद को सजते देखा है कितने पैसे दिए है पार्लर में इस केशसज्जा को बनवाने के लिए।यही सोच कर आशा अनसुनी कर सहेलियों के साथ व्यस्त होने का नाटक करने लगी।राजू फिर से बोला परन्तु आशा को व्यस्त देख चला गया।पीछे खड़े बाबु जी भी अनजान बने खड़े रहे।
तभी श्रीमती शर्मा सामने से आते हुए बोली “अरे आशा बड़ी सुन्दर लग रही हो केश सज्जा भी बड़ी सुन्दर है परंतु बालो में अब चांदी चमकने लगी है कहते हुए श्रीमती शर्मा आगे चली गई।आशा के दिमाग में बिजली सी कौंध गई।उसने तुरंत वाश रूम में जाकर आईना देखा, सच में बालो में चांदी चमक रही थी।
बाबूजी ने देखा आशा सर पर पल्लू लिए बाहर निकल रही थी।बाबूजी को देख तुरन्त बोली अरे “बाबूजी कहा थे आप” बाबूजी मुस्कुरा दिए।सोचने लगे संस्कार सर पर पल्लू नही डाल सकता परन्तु चाँदी की एक लट सर पर पल्लू रखवा सकती है।
डॉ. किरण पांचाल (अंकनी)
ग्रेटर नोएडा