लग गये मुझे हटाने लोग
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कहते हैं कुछ गाने लोग।
लगे मुझे आजमाने लोग।
अब,
जब कि सब छोड़ चुका मैं।
आये मुझे पिलाने लोग।
झूठ जुबाँ पर करे जुगाली।
लगे हैं सच भरमाने लोग।
थके पाँव और गिरा शराबी।
लगे ये किसे उठाने लोग।
कैसे करते प्यार बात की
नफरत लगे भुनाने लोग।
रात, ठहर कर पूछा तुमको।
तुम थे लगे लुभाने लोग।
थके जीस्त का थका जिस्म था।
देख के लगे शरमाने लोग।
पैरों को घुँघरू से बचाओ।
हैं बेताब नचाने लोग।
किस-किस पीड़ा पर सिर धुनते।
आ गये सिर कटवाने लोग।
मन्दिर,मस्जिद युद्ध कर रहे।
चलो चलें मयखाने लोग।
औषध कह-कह जहर दे गया।
आओ उसे जिलाने लोग।
आँखों में मेरी ही अँगुलियाँ।
देखो लगे घुसाने लोग।
धुँधली सी थी किरण चाँद की।
आँखें लगे दिखाने लोग।
तुम हो अच्छे कहा जो इतना।
देने लगे हैं ताने लोग।
त्याग शराफत खड़े हुए तो।
आ गये हैं समझाने लोग।
बारिश में बैठे थे घरों में।
खोज रहे अब दाने लोग।
बजा रहे सब अपनी डफली।
हैं कितने! बचकाने लोग।
झमझम करके आया बादल।
लग गये किन्तु ठिकाने लोग।
सीधेपन पर हँस-हँस करके।
लग गये मुझे रूलाने लोग।
अब,जब आँखें नींद से बोझिल।
आ गये मुझे जगाने लोग।
ताजमहल का ताज कौन है?
कहते तुझे, दीवाने, लोग।
शैशव के हाथों में हथौड़ी।
क्योंकि,पत्थर लगे जमाने लोग।
उनकी राहों में पत्थर थे।
लग गये मुझे हटाने लोग।
शाहिद की खुश्बू अच्छी थी।
लग गये उसे फँसाने लोग।
चैन न महफिल नहीं हरम में।
आ गये सो मयखाने लोग।
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