” लगे सुहानी नित है भोर ” !!
कदम बढ़े हैं ,शहर की ओर !!
गांवों में पसरा सन्नाटा ,
लघु किसान के हिस्से घाटा ,
सब्ज़ी भाजी उगा रहे हैं ,
पेट पालना हुआ कठोर !!
पाला है , कभी वर्षा कम है ,
सभी नीतियाँ तोड़े दम हैं !
यहाँ नियोजन नियति का है ,
हाथ लगे ना कोई छोर !!
रोजगार ना मज़दूरी है ,
कदम कदम पर मज़बूरी है !
नेता सभी ढिढोरें पीटे ,
लिये जा रहे वोट बटोर !!
कर्मों का फल इसे ना कहना ,
श्रम तो है जीवन का गहना ,
यहाँ पल्लवित स्वास्थ सजीला ,
लगे सुहानी नित है भोर !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )