लगा जैसे तुमने मुझे छू लिया है
निशा के शहर में खिली चांदनी जब
लगा जैसे तुमने मुझे छू लिया है
तुम्हारी घनी लम्बी जुल्फें खुलीं जब
लगा जैसे तुमने मुझे छू लिया है।।
चुभाकर के दिल में नुकीली सी बातें
कोई मन के दर्पण को चटका रहा है
मेरी जिंदगी है वो चौराहा जिसका
तेरी ओर हर रास्ता जा रहा है
अडिग है ज़माना अड़ा हूँ मैं लेकिन
तन्हा राह में चल पड़ा हूँ मैं लेकिन
गुजरकर के तुमसे हवाएं चलीं जब
लगा जैसे तुमने मुझे छू लिया है।।
खिले हैं कई फूल बागों में अब भी
बहारों का पर रूप अब ढल रहा है
हसीं है बहुत यूँ तो मौसम शहर का
मगर बिन तुम्हारे हृदय जल रहा है
यादें मधुर हैं सताती हैं लेकिन
कई ऋतुएँ आती हैं जातीं हैं लेकिन
घटाओं से सावन में बूँदें गिरीं जब
लगा जैसे तुमने मुझे छू लिया है।।
इधर तुम उधर हम लहर बीच में है
पर उम्मीद की नाव चलती रही है
सितम की कड़ी धूप है व्यर्थ क्योंकि
तेरे प्यार की छाँव मिलती रही है
सफ़र में कई साथी छूटे हैं लेकिन
कई अश्रु आँखों से टूटे हैं लेकिन
मुझे याद कर रो पड़ी आत्मा जब
लगा जैसे तुमने मुझे छू लिया है।।