लगाया मैंने मोहर दिल पर गुलमोहर के लिए
लगाया मैंने मुहर, दिल पे गुलमुहर के लिए।
मगर वो छोड़ गया गुल ही गुलमुहर के लिए।
मिलेगी मंजिले मकसूद मेरा वादा है।
वह हमसफ़र तो बने मेरे इस सफर के लिए।
हयात तंग है उसकी, बहुत अंधेरा है।
दिया जला के जो बैठा है इस शहर के लिए।