लगता था तुम बदल रहे हो
लगता था तुम बदल रहे हो,
मेरी कसौटी पर खरे उतर रहे हो।
पर क्यों चाहा मैंने ऐसा अलग,
ईश्वर ने तो हमें रचा है बिल्कुल अलग थलग।
तुम्हारी अपनी राह है,
मेरी भी अपनी चाह है।
हां, मैं जानती हूं,
तुम करते नहीं हो मेरे जीवन में हस्तक्षेप,
यह गांठ बांध ली है मैंने एक नेक,
तो करूंगी नहीं मैं भी तुममें दखलंदाज़ी,
ये न समझना, इसमें है कोई हार जीत की बाज़ी।
बस रखती हूं तुम्हारा ध्यान…
क्योंकि,यह भर देता है मुझमें अभिमान।
लगता था तुम बदल रहे हो,
मेरी कसौटी पर खरे उतर रहे हो।