“लक्ष्य”
अब न कुछ करना बहाना।
लक्ष्य इक, तुम भी बनाना।।
हे पथिक, तू रह अडिग,
अविरल चला चल।
सारी बाधाएं भगाना,
मार्ग के कँटक हटाना।
अब न कुछ करना बहाना।
लक्ष्य इक, तुम भी बनाना।।
स्वयंवर की, थी दुपहरी,
आँख ज्यों, अर्जुन ने भेदी।
उसने बस, इतना था जाना,
चूक ना जाए, निशाना।।
अब न कुछ करना बहाना।
लक्ष्य इक, तुम भी बनाना।।
ज्यों मिले सरिता से सागर,
तू भी रखकर शीश, गागर,
प्रेमरस सबको पिलाना,
घृणा को, जड़ से मिटाना।
अब न कुछ, करना बहाना।
लक्ष्य इक, तुम भी बनाना।।
चाँदनी रातों मेँ जगकर,
गीत “आशा”मय सा लिखकर।
सिर के नीचे तुम छिपाना।
जब मिलेँ, उनको सुनाना।।
अब न कुछ करना बहाना।
लक्ष्य इक, तुम भी बनाना..!
##———–##———–##———–##