लक्ष्मीबाई
लक्ष्मीबाई
मनहरणघनाक्षरी
मोरोपंत जी की सुता, भविष्य का न था पता,
बालपन शस्त्रों से, खेल में बिताई थी।
तांत्या नाना संग खेली, आयुधो के वार झेली,
मनु रानी झांसी बनी, शौर्य दिखलाई थी।
चमकती धूप थी वो, महादुर्गा रूप थी वो,
शेरनी सपूतनी से, सेना घबराई थी।
लक्ष्मीबाई ले खड़ग ,शत्रु में आ बेधड़क,
अश्व पवन पे रूढ़, तांडव मचाई ।थी ।
अदम्य साहसी थी वो, रिपु पर भरी थी वो,
वीरांगना बलशाली ,काली बन आई थी।
कड़के दामिनी जैसे, गरजे बादली जैसे,
सिंहकी दहाड़ जैसी ,खूब गरजाई थी।
मर्दानी बनके लड़ी ,रिपु सेना देखें खड़ी,
आंखों से अंगारे गिरे , ज्वाला बन आई थी।
बाहुबली अति भारी, सैकड़ों पर पड़े भारी,
लोचन भृकुटी ताने, काली बन आई थी ।
ललिता कश्यप गांव सायर जिला बिलासपुर (हिमाचल प्रदेश)