लंबे सफ़र को जिगर कर रहा है
तरक्की हो रही है, जिगर सिमट रहा है,
आदमी पनप रहे हैं, इंसान घट रहा है।
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लिखने की हसरतें बेइंतहा हैं, मगर,
उम्दा कुछ लिखते में हाथ कसक रहा है।
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जाने कितना बदल जाता हूँ मैं रोज़-रोज़,
मुझे देख, मेरा पड़ोसी भी ठिठक रहा है।
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बदहवाश है शहर, बेसुध बाशिंदे हैं यहाँ,
किसी को ख़बर नहीं, वो किधर जा रहा है।
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क़ामयाब नज़्में ठहराव में बुनी नहीं जाती,
किसी लंबे सफ़र को, जिगर कर रहा है।