रौशनी में अंधेरा
लघुकथा
शीर्षक – रोशनी में अंधेरा
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दीवाली की रात लिपे पुते घरों में प्रकाशित दीये अलग ही छटा बिखेर रहे थे l पूरे गाँव में बड़ी धूमधाम थी सिर्फ एक घर को छोड़कर, वो घर था रामलाल का , उन्हे सब गांव दद्दू कहता था l
पिछली दीवाली की बात है, मै ड्योढ़ी पर बैठा था तभी दद्दू दीवाली की शुभकामनाएं देने आए थे….
– ‘परनाम ठाकुर ‘
-‘हा, परनाम दद्दू , सब कुशल मंगल तो है’ –
– ‘हा ठाकुर, सब मालिक की किरपा है, इस बार फसल भी ठीक है, सोच रहा हूँ बिटिया के हाथ पीले कर दू.. लड़का भी देखा है अगले पखवारे देवठानी एकास्सी को वरीच्छा कर देंगेl’
‘ये तो तुमने ठीक कहा दद्दू, फसल तो बड़ी अच्छी हुई है, लेनदारो और घर की चिल्ल-चौथन से पीछा छूटे तो दिल को सुकून मिले l
लेकिन किस्मत को पता नही क्या मंजूर था, दीवाली की खुशियां कहर बनकर टूटीं ,,,, किसी पटाखे की एक चिंगारी उनकी सारी खुशियों को स्वाह करके चली गयी l धू-धू कर जलती भयंकर आग की लपटें दद्दू के सारे सपनो को अपने आगोश में ले रही थी, पूरे गाँव में हाहाकार मचा हुआ था, सभी ने पुरजोर कोशिश की किन्तु दद्दू का सब स्वाहा हो गया…. बिटिया की शादी का सामान.. अनाज … कपड़े, नकदी ….. सामान बचाने के फेर में उनकी बेटी झुलस गई सो उसके ससुराल वालों ने रिश्ता तोड़ दिया ,,,,, दद्दू इस असहनीय हादसे के बाद अपना मानसिक संतुलन खो बैठे.. और एक दिन उनका पूरा परिवार गाँव से पलायन कर कहीं चला गया…… तब से वह घर हमेशा हमेशा के लिए अंधेरे के आगोश में समा गया..
आसमान में आतिशबाजी की रंगाबिरंगी रोशनी देखकर सोच रहा हूँ , काश ! आज दद्दू भी हमारे साथ होते…
राघव दुबे
इटावा (उ0प्र0)
8439401034