रोज़ा इफ्तार
रोज़ा इफ्तार
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बाबूजी, पाँच बजने वाले हैं, ये फोल्डर ऐसे ही रख देता हूँ, कल काम पूरा कर दूँगा, मुनव्वर ने रामबाबू से कहा।
अरे ऐसा कैसे, ये तो पहले ही तय हो गया था कि काम आज ही निपटाना है, चाहे सात बजें या आठ, रामबाबू जो एक दफ्तर में स्टोर कीपर थे बोले, तुम्हें तो बता दिया था कि ये खुला हुआ रिकार्ड स्टोर में नहीं रखा जा सकता। ये काम तो आज ही पूरा करना होगा, तुम तो पहले से विभाग का काम करते रहे हो, तुम्हें तो पता है ये रिकार्ड बिना बाइंडिंग के नहीं रखा जायेगा।
अरे बाबूजी, आजकल रोज़े चल रहे हैं, सोच रहा था घर जाकर रोजा़ इफ्तारूँगा। उसके बाद दोबारा आने की हिम्मत नहीं होती। मुनव्वर बोला।
अरे, इतनी सी बात है, मैं तो ऊपर ही रहता हूँ, रोज़ा ऊपर इफ्तार कर लेना। ऊपर सब सामान है। रामबाबू बोले।
अरे नहीं साहब, ऐसा करता हूँ, थोड़ी देर यहीं पास में दुकान पर इफ्तार लेता हूँ, फिर आकर काम निपटा दूँगा। सात बजे तक सब निपट जायेगा।
लेकिन चाय तो तुम मेरे साथ ही पीना, रामबाबू बोले।
पंद्रह बीस मिनट में ही मुनव्वर रोज़ा इफ्तार करके आ गया, और जल्दी जल्दी काम निपटाने लगा। पौने सात तक सारा काम निपट गया। हाथ मुँह धोने के बाद वह बोला: अच्छा साहब, चलता हूँ।
अरे भाई, ऐसे कैसे , हमने तो अभी तुम्हारे इंतजार में चाय भी नहीं पी है, आओ, ऊपर चलो, चाय पीकर जाना। दोनों ऊपर कमरे में गये। कमरा साफ सुथरा था। रामबाबू वहाँ अकेले ही रहते थे। थोड़ी देर में ही वो चाय बना लाये। साथ में कुछ बिस्कुट, कुछ नमकीन, केले, और एक प्लेट में कुछ खजूर ले आये। आ जाओ भाई, चाय नाश्ता कर लो।
खजूर देखकर मुनव्वर बोला साहब, ये तो आप बहुत बढ़िया चीज लाये। खजूर तो हमारे यहाँ बहुत अच्छे माने जाते हैं, हफ्तार में कुछ और न हो तो हम खजूर से ही रोज़ा इफ्तार कर लेते हैं।
अरे भाई, तभी तो मैं कह रहा था, हमारे साथ ही इफ्तार लो।
तुम तो संकोच में नहीं आये।
अरे भैया रोज़ा हो या व्रत हो, ऊपरवाले की इबादत में अपने शरीर को पवित्र करने के लिये करे जाते हैं। अब इबादत तो इबादत ही है। चाहे हम करें या आप। इबादत के तरीक़े अलग हो सकते हैं, लेकिन भावना तो एक ही है। ऊपरवाला सभी की भावनाओं से खुश होता है, और सभी को उसका पुण्य देता है। जब उसके यहाँ कोई भेदभाव नहीं है, तो उसके बंदों में क्यों हो।
रामबाबू बोलते गये।
अरे साहब, आज तो आपने हमारी भी आँखें खोल दीं, मुनव्वर बोला: वाकई सभी अल्लाह के बंदे हैं तो आपस में भेद कैसा।
और वह रामबाबू को नमस्कार करके अपने घर की ओर चल दिया। चलते चलते वह रामबाबू जी के विषय में सोच रहा था, कितने अच्छे विचार हैं साहब के। न कोई अहंकार, न कोई धार्मिक विद्वेष, सरल इतने कि खुद ही चाय बना लाये, और सभी धर्मों का आदर करने की बात ने तो उसका दिल छू लिया। काश; सभी लोगों के विचार ऐसे ही होते तो दुनिया में इतने दंगे फसाद न होते, यही सोचते सोचते वह कब घर पहुँच गया पता ही न चला।
श्रीकृष्ण शुक्ल,
MMIG – 69,
रामगंगा विहार,
मुरादाबाद उ.प्र.
मोबाइल नं. 9456641400.