रोशनी का चुंबन
खामोश सी
आहिस्ता आहिस्ता सरकती
गहरी काली रात…
मौन नीरवता के साम्राज्य में
बरसों के पसरे पड़े
सन्नाटे में लिपटी
गहरी काली रात….
पत्तों के फ़ड़कने पर
धड़कती छाती से
साँसें रोककर
आहट को सुनने की
नाकाम कोशिश करती
गहरी काली रात…
थरथराते होंठ
कंपकंपाता बदन
विद्युत सी
सिहरन में
परत दर परत
सिकुड़कर
खुद में
जज़्ब हो जाने के
जतन में गुज़रती
गहरी काली रात…..
सदी के सीने पर
रेंगती काल रात्रि के इर्द गिर्द
वक्त के प्रहरी के
मज़बूत घेरे में,
लिहाफ़ का कफ़न
ओढे मैं अशान्त लेटी हूँ…..
अचानक
माथे पर पड़ती
चाँदनी के आभास में
पलकों की ओट से देखा
कालिमा को
धकेलकर
आसमान के सीने से
झाँकता धुँधला सा चाँद
समेट लाया कमरे में
बेशुमार रोशनी
और सूनापन तोड़कर
घर हो उठा आबाद….
जतन से महफ़ूज़
रखी रूह
जी उठी फिर से
पाकर रोशनी का चुंबन…
नम्रता सरन “सोना “