रोला छंद
रोल छंद
सुबकती रही रैन, यह कैसी घड़ी आई।
खो रहा है चैन, अमा यह कैसी छाई।।
हुई सुनहरी भोर, ऊषा ले अंगड़ाई।
पंछी करते शोर, चली ठंडी पुरवाई।।
गिरती चमन तुषार, पात -पात हुए चांदी।
प्रकृति झुलाए गोद ,बन गई डाली बांदी।।
करे धरा श्रृंगार ,दिखे वह अनुपम रूपा।
करती सदैव प्यार, फल फूलों से अनूपा।।
सन- सन करती वायु, बजाती है शहनाई।
खड़के तरुवर पात, धुन मधुर -मधुर सुनाई।।
लेती नदी हिलोर, छेड़ती राग सुहाना।
बड़े सिंधु की ओर, पाने प्रीतम पुराना।।
बगीचे का गुलाब, देखती दुनिया सारी।
हे छवि अति मनुहार ,प्रशंसा पाए भारी।।
कांटो पर नित वास ,रहता सदा मुस्काता।
होना नहीं उदास, सदैव सीख यह देता।।
ललिता कश्यप गांव सायर जिला बिलासपुर हिमाचल प्रदेश