रोपनी गीत
आयोजन-लोकगीत
मानीं कहलका, मकई दीं बोई।
रोपनियाँ ए सइयाँ, हमसे ना होई।
मरिचा नियन लागे बरखा के घाम हो।
बरखा के घाम पिया, बरखा के घाम हो——
लागता जर जाई देहिंया के चाम हो।
देहिंया के चाम पिया, देहिंया के चाम हो——
मठवा पीरा टा टे, देखऽ रोई-रोई।
रोपनायां——–
भादो में झमझम बरसे ला पानी।
बरसे ला पानी पिया, बरसे ला पानी—-
कोठा से निक पिया आपन पलानी।
आपन पलानी हो आपन पलानी—–
खतिया टूरल जाई, दुनू जाना सोई।
रोपनियाँ ए सइयाँ, हमसे ना होई।
(स्वरचित मौलिक)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य’
तुर्कपट्टी, देवरिया, (उ.प्र.)
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