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5 Jul 2021 · 7 min read

रोता बुढ़ापा

कुछ वर्ष पूर्व की बात है | उत्तरप्रदेश के मुरादाबाद जिले में एक मध्यम वर्गीय परिवार रहता था l उस परिवार के मुखिया का नाम कैलाश प्रकाश था | वो एक सरकारी पद पर कार्यरत थे | उनकी पत्नी का नाम वीणा था | उनकी दो संताने थी , एक पुत्र और एक पुत्री | पुत्र का नाम हरीश और पुत्री का नाम विमला था |

कैलाश और उनकी पत्नी वीणा स्वभाव से अत्यंत सरल और सहज थे , परन्तु आम भारतीय परिवार की तरह उन पर भी समाज का दबाव था ,जो उनके हर एक कार्य और निर्णय में परिलक्षित होता था | दोनों पति पत्नी पूरी श्रद्धा से दोनों बच्चों के पालन पोषण में लगे रहते थे | अपनी इच्छाओं से पूर्व बच्चों की इच्छाओं का मान रखते थे |

प्रत्येक माता पिता अपनी संतानों को हर एक संकट और संघर्षों से दूर रखने का प्रयास करता है जो वो अपने युवावस्था में झेला होता है , हर उस वस्तु को अपनी संतान को देना चाहता है जो वो स्वयं कभी सपने में भी नई सोचा होता है | अर्थात वो अपनी संतान के लिये सर्वश्रेष्ठ की कामना करता है | बस यहीं चाह कैलाश और वीणा के भी मन में थी |

प्रारम्भ में उन्होंने अपने बच्चों की शिक्षा सामान्य विद्यालय में कराई , धीरे धीरे समय बीतता गया और दोनों बच्चे नवी और ग्यारहवीं कक्षा में पहुंच गए | दोनों बच्चे पढ़ने में अच्छे थे परन्तु उनकी अगंरेजी भाषा में उतनी पकड़ नहीं थी | जिससे वो स्वयं को मोहल्ले में अन्य बच्चों से निम्न समझने लगे | एक दिन हरीश ने अपने पिता से कान्वेंट में पढ़ने की इच्छा व्यक्त की , किन्तु दोनों बच्चों को कान्वेंट में पढ़ाने का सामर्थ्य कैलाश में नहीं था | कैसे भी करके उसने अपनी जमापूंजी तोड़कर उनका कान्वेंट में दाखिला करा दिया | बच्चे पढ़ने में अच्छे थे तो उन्हें ज्यादा दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ा | किन्तु उच्चवर्गीय बच्चों के साथ पढ़ने लिखने से उनके स्वभाव में परिवर्तन दिखने लगा | जो बच्चे वर्ष में दो बार होली और दिवाली में नए कपडे पाके खुश हो जाया करते थे उनको अब हर महीने नए कपडे , जूते चाहिए होते थे | माता पिता क्या करते !! इच्छाएं पूरी करते गए | बच्चे तो नासमझ होते हैं उन्हें यह ज्ञान नहीं होता की किसी की बुद्धिमत्ता का परिचय उसके अंग्रेजी बोलने या लिखने से नहीं होती | जिनको पढ़ना होता है वो झोपड़ी में रहके भी बहुत आगे जा सकते हैं , वो बच्चों की लगन और निश्चय पर निर्भर करता है | किन्तु अपने बच्चों को अन्य बच्चों के समकक्ष लाने की होड़ में माता पिता भी जानेअनजाने एक प्रतियोगिता का हिस्सा बन जाते हैं |

धीरे-धीरे समय बीतता गया और बच्चे कॉलेज में पहुंच गए ,मोबाइल का भी जमाना शुरू हो गया | मोबाइल ने परिवार को और विखंडित कर दिया | जहाँ पहले शाम की चाय और भोजन सब साथ में बैठकर करते थे अब एक दुसरे का हाल चल लेने का समय भी न था किसी के पास | दोनों बच्चे अपना सारा समय मोबाइल में व्यतीत करने लगे | अब रविवार वो रविवार नहीं होता था | अब दोनों बच्चों का छुट्टी का दिन अपने दोस्तों के साथ बाहर ही बीतता था | वीणा पूरे हफ्ते प्रतीक्षा करती थी की कब रविवार आये और बच्चों को कुछ नया बनाके खिलाउ| किन्तु अब उन्हें माँ के हाथ का खाना कहाँ रास आता ? उसके पूछने से पहले बच्चे बोल देते आप अपने और पापा के लिए बना लेना हम बाहर ही खाएंगे , और माँ अवाक् रह जाती थी |

और समय बीता हरीश की मुंबई और विमला की बैंगलोर में नौकरी लग गयी और दोनों चले गए | बस फिर क्या था लग गए दोनों चकाचौंध भरी दुनिआ में खुद को सबसे काबिल साबित करने में | हफ्ते में एक बार वो दोनों बात कर लेते थे अपने माता पिता से | कुछ समय और बीता और दोनों बच्चों का विवाह हो गया | वो और ज्यादा अपनी निजी जीवन में व्यस्त रहने लगे|

दोनों बच्चे जीवन में किसी भी कीमत पर सबसे आगे दिखना चाहते थे | दोनों को विदेश जाने का मौका मिला | दोनों अपने परिवार सहित विदेश चले गए | चूँकि कैलाश के सेवानिवृत होने में अभी दो वर्ष का समय शेष था तो वो और वीणा भारत में रुके रहे| वो दोनों सोचने लगे पहले होली दिवाली बच्चों से मुलाकात तो हो जाती थी अब तो उनकी आवाज सुने ही इतना दिन निकल जाता है , बहुत याद आती है उनकी |

किसी मित्र ने कैलाश को बता दिया की अब तो वीडियो कॉल पे तुम अपने बच्चों को देख सकते हो मिला लिया करो | एक दिन कैलाश ने अपनी बेटी विमला को वीडियो कॉल की | बहुत दिनों से बात न होने के कारन माता पिता दोनों भावुक हो गए और रोने लगे | बेटी को गुस्सा आगया और उसने बोला ” यदि आपको ऐसे ही रोना धोना होता है तो आजके बाद मुझे फ़ोन मत करना , मेरा समय बर्बाद होता है ” | बेटी की बाते सुनके कैलाश की हिम्मत न पड़ी की वो अपने पुत्र को फ़ोन कर सके लेकिन माँ का दिल कहाँ मानता , बोला की हरीश को लगाओ फ़ोन | बेटे ने फ़ोन उठाया तो कैलाश ने बोला ” बेटा घर कब आओगे ? बहुत समय हो गया और अब सेवानिवृत भी हो गया हूँ , हमारा मन नहीं लगता अब अकेले ” | हरीश को कहाँ ये बाते समझ आती अभी उसे और ऊंची उड़ान भरनी थी वो बोला ” पिता जी मैं जनता हूँ आप सेवानिवृत हो गए और आपके पास करने को कुछ नहीं है | किन्तु मैं अभी सेवानिवृत नहीं हुआ मुझे अभी बहुत आगे जाना है पैसा कमाना है | हर महीने आपको पैसा भेज तो देता हूँ जहाँ मन वहां जाइये घूमिये और मुझे फ़ोन करके परेशान मत कीजिये |”

वो शब्द कैलाश को हृदयाघात से लगे और वो बहुत उदास रहने लगे | वीणा उनको बहुत समझाती थी पर वो शब्द तीर बनकर उनको निरंतर बेंधते रहे | उनकी हालत बिगड़ती गयी काफी समय बीत गया और बच्चों का फ़ोन नहीं आया | दवा भी कुछ असर नई कर रहा था | एक दिन वो वीणा से रोते हुए कहने लगे ” हमने अपना पूरा जीवन अपने बच्चों को समर्पित कर दिया | अपने लिए कभी कुछ नहीं सोचा | हमारी अपेक्षा उनसे बस इतनी है की वो अपने जीवन में से कुछ समय हमे भी देदे , क्या ऐसे सोचना गलत है ? हमने अपनी सीमाओं से परे जाकर उनकी इच्छाओं की पूर्ती की परन्तु आज हमारी दो दो संतान होने के बाद भी हम निःसंतान की तरह जीवन वयतीत कर रहे हैं | कैसी विडंबना है ये की जिन बच्चों के लिए हमने अपने जीवन के नजाने कितने घंटे उन्हें दे दिए आज उनके पास हमारे लिए ३ महीने बाद भी २ मिनट का समय नहीं हैं ??? मेरे जाने के बाद तुम उनको फ़ोन मत करना , न ही किसी रिश्तेदार के पास जाना | मैंने तुम्हारे लिए वृद्धाश्रम में स्थान सुनिश्चित कर दिया है | तुम वही चली जाना और अपन शेष जीवन वही बिताना | यह कहते ही कैल्श परलोक सिधार गए और वीणा कैलाश के कथनानुसार वृद्धाश्रम चली गयी |

कुछ समय बीता बेटी को अचानक से माता पिता की चिंता हुई और कैलाश के नंबर पर फ़ोन करने लगी | नंबर बंद आने पे उसे और चिंता हुई और उसने अपने भाई हरीश को बताया | दोनों को अपराधबोध तो हो ही गया था | उन्होंने भारत आने का निश्चय किया और जब घर पर पहुंचे तो वहां घर पर ताला लटका देख चौक गए | तभी एक पड़ोसी आया और हरीश के हाथ में मकान का कागज थमाते हुए बोला ” ये लो पकड़ो मेरा काम तो हो गया , किन्तु तुम दोनों ने अच्छा न किया | एक महीने पहले ही तुम्हारे पिता का देहांत हो गया और माता वृधाश्रम चली गयी |” यह सुनते ही दोनों की आँखे शर्म से जमीन में धस गयी और अश्रुधारा बहने लगी | जैसे तैसे उन्होंने अपनी माँ को ढूँढा और उसे पकड़कर रोने लगे और माफ़ी मांगने लगे | माँ बोली ” बेटा भावुक क्यों हो रहे हो ? जो होना था वो हो गया | मैं तो माँ हूँ सदैव तुम्हारे तरक्की और सुख की कामना करती हूँ और करती रहूंगी | किन्तु तुम्हारे साथ जाके मैं तुम्हारी तरक्की में बाधा नहीं बनना चाहती हूँ | अब तुम लोग सक्षम हो और अपनी माँ की तुम्हे आवश्यकता नहीं | तुम्हारे पिता की भी यही इच्छा थी की मैं अपना शेष जीवन यही बिताऊ | बहुत मनाने के बाद भी माँ साथ जाने को तैयार न हुई और बोली ” बेटा जानते हो मुझे यहाँ क्यों अच्छा लगता है ? क्यूकी ये लोग एक दुसरे को अपना समय देते हैं | मैं यही रहूंगी और हाँ जाते जाते एक निवेदन करती हूँ की मेरी मृत्यु की खबर सुनके बस मुझे मुखाग्नि देने का समय अवश्य निकल लेना अगर हो सके तो ” | माँ यह कहकर अंदर चली गयी और बच्चे स्तब्ध रह गए …

“क्या रिश्ते निभाना केवल माँ बाप का दायित्व है बच्चों का नहीं ? जीवन की भाग दौड़ में हम इतना आगे भाग जाते हैं की , पीछे रह गए अपने बूढ़े माँ बाप को देखना का समय नहीं निकाल पाते हैं | कैलाश और वीणा की कहानी आज नजाने कितने घरों की कहानी है | समय रहते अपनी आत्माग्लानि से बाहर आना ज्यादा उचित होगा नाकि हरीश और विमला की तरह सब कुछ ख़तम होने के बाद जीवन अवसाद में बिताना | क्युकी आत्मग्लानि की अनुभूति नरक के जीवन की अनुभूति कराती है | ऐसा संकल्प ले की भविष्य में किसी नए वृद्धाश्रम की नीव नहीं पड़ने देंगे और अपने माता पिता को जीवन की अमूल्य धरोहर मान के अपने पास संभालकर रखेंगे जैसे उन्होंने हमे रखा है आजतक |”

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