रोता आसमां
मैंने देखा
अक्सर ही
आसमां को रोते l
धरती की
दरकी छाती में
बबूलों को बोते ,
बारूदों की
ढेरी में
इंसानों को खोते ,
निगाहों को लालच के
कितने ही
ख्वाब संजोते ,
दहेजरूपी
बलि वेदी पे
मासूमों को सोते ,
देख रहा था
इंसानियत को
मुख पे कालिख पोते ,
बेटों के हाथों
भारत माँ का
अपमान होते ,
हाँ ! मैंने देखा
अक्सर ही
आसमां को रोते l