रोटी
रोटी
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जिनको आसानी से मिल जाती है उनके लिए तो रोटी का शायद मोल न हो लेकिनजिन्हें
नहीं मिल पाती उनके लिए रोटी से कीमती कुछ
नहीं ।भूखे व्यक्ति से रोटी का मोल पूछो पता
चल जायेगा । देखने में कितना छोटा सा यह पेट है लेकिन इसी पेट की खातिर इसान क्या
नहीं करता ? बूढ़े से बूढ़ा व्यक्ति मजदूरी करता
है ,नन्हे नन्हें बच्चे स्कूल की बजाय काम करने
के लिए मजबूर हो जाते हैं । नारायणी कही जाने वाली जग की सृष्टिकर्ता नारी पैरों में घुँघरू बाँध कर विषपान करने के लिए मजबूर
हो जाती है । लोग चोरी डकैती हत्या न जाने
और क्या क्या कर जाते है ।
रोटी देखने में जितनी छोटी मुलायम सुन्दर और क्षुधा को तृप्ति प्रदान करने वाली है
उतनी ही लोगों को अपनी उँगली पर भी नचाने
वाली है । कोई व्यक्तिसुबह से शाम तक अथक परिश्रम करता है तब उसे दो रोटी नसीब होती है तो किसी को एक समय की रोटी भी मुश्किल
से मिल पा,ती है ।रोहित मन ही मन सोच रहा था कि अचानक झटके के साथ रेल रूकी और रेल के रूकते ही उसकी तन्द्रा भी भंग हुई ।सामने से चायवाला आवाज़ लगा रहा था-
“चाय ले लो चाय”
“भइया एक चाय देना “रोहित ने चाय वाले से
कहा ।”
चायवाला चाय देकर और अपने पैसे लेकर आगे के डिब्बों में बढ़ चला ।
चाय लेकर वह सोचने लगा रात भर रेल में जागकर चाय बेचकर यह चायवाला भी तो दो रोटी की ही व्यवस्था करता है । तभी सामने एक छोटी सी लड़की पर निगाह पड़ी ,वह बमुश्किल छः सात साल की रही होगी । अपने कद से बड़ा बोरा लेकर रेल से यात्रियों के द्वारा फेंके गये पानी के बोतल बड़े करीने से उठाकर बोरे में भर रही थी ।कभी कभी बोरे सहित लुढ़क पड़ती फिर उठकर अपने काम में सहज भाव से लग जाती । एक एक बोतल उसके चेहरे की तृप्ति को दर्शा रहा था ।यह भी तो पेट पालने के लिए , दो रोटी के जुगाड़ के लिए ही तो किया जा रहा था ।
स्टेशन आने वाला था रोहित ने अपना सामान सहेजा और उतरने की तैयारी करने लगा ।आज वह बहुत खुश था कि उसकी रोटी
की व्यवस्था हो गयी यानी उसकी नौकरी लग
गयी थी । उसे हाईस्कूल तक के बच्चों को पढ़ाने के लिए यानी टी.जी.टी. गणित की पोस्ट
मिली थी ।इसे पाने के लिए उसने दिनरात एक
कर दिये थे । अपनी बी.ए.की पढ़ाई पूरी करके उसने बी.एड किया इसके पश्चात ग्रेजुएट शिक्षक के पद के लिए आवेदन कर दिया । लिखित परीक्षा पास करने के बाद साक्षात्कार हुआ फिर जाकर चयन हुआ ।अखबार में शिक्षक पद हेतु चयनित लोगों में अपना नाम
देखकर उसकी खुशी का ठिकाना ही ना रहा।
उसने एक नहीं कई कई बार उस सूची को देखा
था ।अन्ततः उसने नये सफर की ओर कदम बढ़ा दिया । जिन बच्चों को ट्यूशन पढ़ाता था उनसे और उनके मातापिता से मिलकर ,अपने दोस्तों से मिलकर वह नये शहर ,नये लोगों तथा नयी मंजिल की ओर बढ़ चला ।
रोहित को वो दिन भी याद आ रहा था
जब उसने चूहे के बिल के पास से रोटी उठाकर
खायी थी ।इण्टर की पढ़ाई के लिए उसे बहुत ही परेशानी उठानी पड़ी थी । पिता ने आगे पढ़ाई का खर्च देने से मना कर दिया था ।घर में तनावपूर्ण माहौल बन गया था ।
“अब मैं नहीं पढ़ा सकता ,अपना खर्च स्वयं वहन करो ।”पिताजी बोले।
वह कैसे करेगा अभी कितना बड़ा हो गया ?
माँ बीच में बोल पड़ीं । माँ का ह्रदय होता भी कोमल है । वह अपने बच्चे को कभी भी कष्ट
में नहीं देख सकती । किन्तु बहुत सारे पिता
रूखे स्वभाव के होते हैं ।
“तुम्हारे लिए तो बच्चा है ,मेरी तो इस उम्र में शादी भी हो गयी थी ।”पिता गुस्से में बोले । जो भी हो वो अभी क्या करेगा ?पढ़े भी और पढ़ाये
भी । कई बार पिता अपने भोगे हुए समय की
पीड़ा का दर्द बच्चों के चेहरे पर देखना चाहते हैं
या अपनी सन्तान को जल्दी ही बड़प्पन का चोला ओढ़ाना चाहते हैं पता ही नहीं चलता ।
पिता की आज्ञानुसार अब रोहित के पास बाहर जाकर पढ़ने के सिवाय कोई रास्ता न बचा था । वह माँ से मिलकर निकल पड़ता है नयी मंजिल की खोज में ।चलते समय कुछ पैसे माँ ने पिता से छिपाकर दे दिये थे वही उसके लिए आधार थे।कुछ दिन रिश्तेदारियों में आश्रय की खोज की,पर सफलता नहीं हासिल हुई ।रिश्तेदार भीबने दिन के होते हैं बिगड़े दिन पर तो सगे भी मुख मोड़ लेते हैं ।और कहा भी तो जाता है कि रिश्तेदारी दो दिन की ही सही होती है ज्यादा की नहीं ।खैर दुनिया में कुछ लोग बुरे होते हैं तो कुछ लोग अच्छे भी होते हैं । एक रिश्ते के ही भाई पंकज ने रोहित को सलाह दिया ,
” रोहित कुछ बच्चों को ट्यूशन पढ़ा लो और एक सस्ता सा कमरा ले लो तभी तुम्हारी पढ़ाई हो पायेगी यहाँ तो तुम परेशान ही रहोगे काम करोगे तो ठीक नहीं तो बुरे कहलाओगे ।”
उसे पंकज की बात पसंद आ गयी ।सच में किसी पर बोझ नहीं बनना चाहिएं ।वह
किराए का एक कमरा ले लेता है और छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना आरम्भ कर देता है ।बच्चों को एक के बजाय डेढ़ दो घंटे का समय
देता ताकि कोई भी ट्यूशन छूटे नहीं । सुबह
अपनी पढ़ाई और विद्यालय से आने के बाद
शाम को ट्यूशन पढ़ाना फिर रात में जो बन
जाता खिचड़ी ,रोटी -चटनी आदि बना लेता।उसका व्यवहार इतना अच्छा था कि उसे ट्युशन पढ़ाने के लिए बच्चे भी आसानी से मिलने लगे । सारी परेशानी रात को खाना बनाने को लेकर थी ।ऐसे में ही एक दिन उसने चार रोटी बनायी और दो रोटी खा ली और दो रोटी सहेज कर रख दिया ताकि शाम को कुछ खा सके । विद्यालय से आकर जब उसने देखा तो चूहे महाराज एक रोटी को खींचकर अपनी बिल में ले जा रहे थे।रोहित के लिए वह चूहा
सबसे बड़ा दुश्मन था ।उसको बहुत तेज भूख लगी थी वह झपटकर बिल के पास से रोटी उठा लेता है और झाड़कर खाने लगता है । उसे माँ की याद आ रही थी ।वह कितने लाडप्यार से खाना खिलातीं और वह कितने नखड़े किया करता था। कभी चावल नहीं खाना है तो कभी अलग अलग सब्जियों की फर्माइश । कभी खाना तैयार होने के बाद भी दूसरी चीज के लिए जिद और माँ फिर बडबड़ाते हुए उसे भी बनातीं । उसकी आँखों से टपटप करके आँसू बहने लगे ।
तभी स्टेशन आ गया और रोहित की तन्द्रा भी टूट गयी ।लोग अपना सामान लेकर उतरने लगे थे । रोहित भी रेल से उतरकर वह स्टेशन से बाहर की ओर जा रहा था ।आज उसे सबकुछ बहुत अच्छा लग रहा था आखिर उसकी अपनी सुन्दर सी नयी मंजिल उसे गले लगाने को बेकरार जो थी ।
डॉ.सरला सिंह “स्निग्धा”
दिल्ली।