बाल दिवस स्पेशल… भज गोविंदम भज गोपालम्
(बच्चों के प्रश्न)
रोज नयी है एक प्राॅब्लम।
भेजे के सब खाली काॅलम।
कोई न पूछे हालम चालम।
भज गोविंदम् भज गोपालम्।
कंधों पर है बस्ता भारी,
ये मजबूरी या लाचारी,
कैसे कह दें रहम करो अब ?
कौन मानता बात हमारी ?
मिलकर पीस रहे सब देखो,
उपचार करोगे कब देखो ?
कब तक ओर रखें हम संयम ?
भज गोविंदम् भज गोपालम्।
एलजब्रा से तो जीत गये,
ज्योमेट्री के विपरीत गये,
सारे एंगल बिगड़ गये तो,
मन में हो भयभीत गये।
परम्यूटेशन काॅम्बीनेशन,
सीखे फंक्शन और रिलेशन,
रट रट कर सब कोनिक थ्योरम,
भज गोविंदम् भज गोपालम्।
प्वाइंट लाइन से 2 – डी तक,
वेक्टर से पहुँचे 3 – डी तक,
है काम अधूरा कापी में,
यह बात पहुंच गई डैडी तक।
डैडी ने हिरन बना डाला,
डंडों से मार सुजा डाला।
चहरे पर छाया है मातम,
भज गोविंदम् भज गोपालम्।
खत्म किया था डिफरेंशियशन,
आ धमका फिर इंटीग्रेशन,
बिगड़े सब सीक्वेंस हमारे,
कैसे साॅल्व करें इक्वेशन ?
अब उलझन देख सिमेट्री के,
फिर नखरे ट्रिगनोमेट्री के,
बैठे पेपर में बेहालम,
भज गोविंदम् भज गोपालम्।
क्यों सौ से नंबर आए कम ?
पर खड़े खड़े बस सुनते हम,
जब मार पड़ी तो आँखें नम,
किंतु नहीं कोई हमको ग़म।
अस्त व्यस्त जीवन का सर्किल,
मम्मी पापा टीचर ने मिल,
कर डाले फीके सब मौसम,
भज गोविंदम् भज गोपालम्।
(शिक्षक के जवाब)
ये सच है मुश्किल आएगी,
ये लर्निंग खूब रुलाएगी,
मान लिया टीचर का कहना,
फिर छू मंतर हो जाएगी।
आस हमारे मन में केवल,
जीतो तुम सोने के मेडल,
पढ़ लिखकर तुम बनो महानम्,
भज गोविंदम् भज गोपालम्।
फल निश्चित श्रम का निकलेगा,
मरुथल भी सोना उगलेगा,
चल उठ चल बढ़ चल भेद लक्ष्य,
ये जीवन इक दिन महकेगा।
तज दम्भ द्वेष पाखण्ड क्रोध,
चाहे जितना भी हो विरोध,
मात पिता का रखना ध्यानम्।
भज गोविंदम् भज गोपालम्।
पंकज शर्मा “परिंदा”🕊