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31 Jan 2023 · 1 min read

रोक दो साजिशे तुम्हारी

इससे पहले बदले हम ,
रोक दो साजिशे तुम्हारी

लौट आओ घर समय पर
टूट ना जाए उम्मीदें हमारी

चकाचौंध में न जाए ,
यह आंखें कही तुम्हारी

वक्त आने दो हमारा
देखोगे शोहरतें हमारी

खुद ना आगे बढ़ना
दूसरों को रोकते हो ,

यह कौन सी लगी है
तुम्हें – यार – बीमारी |

कवि दीपक सरल

Language: Hindi
1 Like · 53 Views
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