रोका क़दम क़दम पे था हालात ने मुझे
रोका क़दम क़दम पे था हालात ने मुझे
चलना सिखाया पर मेरी औक़ात ने मुझे
सीली हुई हैं मेरी तो यादें भी आज तक
इतना रुलाया है तेरी हर बात ने मुझे
तुझको मुआफ़ इसलिए करना मुझे पड़ा
पिघला दिया था मेरे ही जज़्बात ने मुझे
अपने ही दिल की मुझको न सुध बुध कोई रही
ऐसा भिगोया प्यार की बरसात ने मुझे
मेरे नसीब में तो न थी धूप चाँदनी
साया दिया अँधेरों का दिन रात ने मुझे
क्या होगा रूबरू वो कभी आएँगे अगर
बेचैन कर दिया है ख़यालात ने मुझे
देती रही जवाब तो सारे मैं ‘अर्चना’
हैरां मगर किया है सवालात ने मुझे
डॉ अर्चना गुप्ता