रैन बसेरा (निर्गुन)
यहां कोई सदा न रह पाए
दुनिया एक सराए
एक इधर से जाए, रे राही
एक उधर से आए…
(१)
कौन अपना-कौन पराया
झूठ-मूठ का सब मोह-माया
समय रहते ही जो न समझे
वह पीछे पछताए…
(२)
आख़िर क्यों यह लूट-मार
आख़िर क्यों यह भाग-दौड़
मुट्ठी बांध के आने वाला
मुट्ठी खोल के जाए…
(३)
जब तक सपनों में खोया
जागते हुए भी तू सोया
इन झूठी रंग-रलियों में
काहे रैन गंवाए…
(४)
करने से पहले प्रस्थान
तू अपने को ले पहचान
यही गांव-गांव नगरी-नगरी
एक फकीरा गाए…
#Geetkar
Shekhar Chandra Mitra
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