रे नादान
बच पायेगा कौन कौन अब मारा जायेगा
ऐसी ही कुछ बेचैनी है मन के कोने में
हिम्मत तो रखनी होगी मुस्काना भी होगा
काहे की होशियारी है अब छुपकर रोने में
तेरी करनी तेरे आगे तेरे मन की तू जाने
तेरी ही मैं तेरी ही जय,फिर भी तू लाचार खड़ा है
कंधे ढूंढ रहे हैं अपने,लाशों का अंबार पड़ा है
इतना तो लाचार कभी तू पहले नहीं रहा होगा
दम घुटने के जैसा मंजर पहले नहीं सहा होगा
मौत बदलकर भेष आयेगी किसने ऐसा सोचा था
तड़पेगा इंसान सामने न कोई हाथ लगायेगा
पैसा खूब कमाया लेकिन मौत बड़ी महँगी निकली
न खरीद पाया तू साँसें न लोगों की भीड़ जुड़ी
खामोशी से चला गया वो शोहरत जिसकी दासी थी
न हुजूम था लोगों का न फैली कहीं उदासी थी
सबकी जान हलक मे है सब अपनी साँसें थामें हैं
सब धरती पर रेंग रहे न कोई यहाँ हवा में है
जो धीरज धर पायेगा वो निश्चय ही तर जायेगा
जीवन की आपाधापी में कितना और कमायेगा ।
बस कर ये इंसान तेरी औकात नहीं तू जीत सके
तेरा दंभ तोड़ने को प्रकृति ने कितने रूप धरे ।
तू जाग जायेगा लेकिन तब तक देर बहुत हो जायेगी
“रे नादान” संभल जा तुझको अक्ल कभी न आयेगी।
Priya》Dd