रे दीप उजाला क्या होगा!
शीर्षक – रे दीप उजाला क्या होगा!
विधा – गीत
परिचय- ज्ञानीचोर
शोधार्थी व कवि साहित्यकार
मु.पो.रघुनाथगढ़, सीकर राज.
मो. 9091321438
सुनसान डगर जीवन के मेलें
शूल-धूल बवंडर के नित्य रेलें
उठते शुष्क मरू हृदय धरा पर
बिखर टूट पड़ती साँसों की बेलें।
कहों,हे बाल चपल मृदुल भावना!
रे दीप उजाला क्या होगा!
उजड़ी जाती भाव सुमन क्यारियाँ
उलझी जाती नित्य आशा लड़ियाँ
ठहर-ठहर, झंझा झंकोर गर्जन से
गिर-बरस पड़ती बिजुरी-बदरियाँ।
कहो! सुनो! हे बाल चपल विहंगी!
रे दीप उजाला क्या होगा!
उमड़-घुमड़ घोर घन-स्मृति आती
कर अश्रुपात पदचिह्न बना जाती
बहती प्रलयकालीन समीर-साँसें
फिर! जीवन-बगिया उजड़ जाती।
कहो! हे बाल सुषुप्त अभिलाषे!
रे दीप उजाला क्या होगा!