रेल गाड़ी (बाल कविता)
दोहरी हैं जहां पर पटरी
और जहां विद्युत की कटरी
चले नहीं अब छुक छुक करते
भाप यान सब हुए कबाड़ी |
बिजली पावर खींचे गाड़ी || रेल गाड़ी रेल गाड़ी ||
पहाड़ हो या नदी पहाड़ी
हाँफे बिना दौड़ती गाड़ी
दो खेतों के बीचों बीच
मार्ग बनाते दिखे जुगाड़ी |
झूम झूमकर चलती गाड़ी || रेल गाड़ी रेल गाड़ी ||
गए कई स्टेशन पीछे
भीड़ खड़ी, पर नहीं पसीजी
बिना रुके ही बढ़ती जाती
नहीं देखती कभी पिछाड़ी |
दो दर्जन डिब्बों की गाड़ी || रेल गाड़ी रेल गाड़ी ||
कभी अचानक धीमी होकर
हो खड़ी रफ्तार भूल कर
घटाटोप बाहर अंधियारा
धकधक दिल, तेज हो नाड़ी |
चलती नहीं जबतक गाड़ी || रेल गाड़ी रेल गाड़ी ||
सांस उखड़ना जब बढ़ जाए
देख रोशनी कहीं रुक जाए
थोड़ा रुक पानी को पीकर
पकड़े अपनी राह अंगाडी |
क्षण भर रुक दौड़ती गाड़ी || रेल गाड़ी रेल गाड़ी ।।