रेलगाड़ी का सफर
चलो दोस्तों आज शुरुआत करते हैं रेलगाड़ी का सफर एक नई कहानी से
मैं आपके लिए लेकर आया हूं एक जबरदस्त कहानी जो आपको बहुत कुछ सिखाएगी । यह कहानी सार्वजनिक रूप से सत्य घटना है ।
तो चलिए समय बर्बाद ना करते हुए हम आते हैं कहानी पर
बात उन दिनों की है जब मैं ट्रेन में सफ़र कर रहा था मैं भोपाल से गाडरवारा की ओर अपने घर जा रहा था । और हम हिंदुस्तानियों का जैसा कहना है कि अगर सफर का मजा लेना है तो जनरल डिब्बे में बैठो ।
तो मैंने भी सोचा की जनरल डिब्बे में बैठा जाए । बात उस समय की है जब रक्षाबंधन का टाइम था लोग अपने अपने घर की ओर जा रहे थे और मैं भी घर जा रहा था ट्रेन में इस दौरान बहुत भीड़ भाड़ हुआ करती है मैं स्टेशन पहुंचा और मैंने वहां देखा कि
बहुत सारे लोग पहले से ही ट्रेन का इंतजार कर रहे हैं मैं देखकर हैरान रह गया कि इतने सारे लोग मुझे नहीं लगता कि शायद सभी लोग जा पाएंगे लगभग कुछ ना कुछ तो छूट जाएंगे ऐसा मुझे उस वक्त लग रहा था तो कुछ समय पश्चात ट्रेन आई और सब लोग चढ़ने लगे भीड़ इतनी थी कि मैं बड़ी मुश्किल के पश्चात चढ़ पाया भीड़ इतनी थी कि मुझसे अंदर नहीं जाया जा रहा था लोग धक्का-मुक्की पर उतर आए थे मुझे यह माहौल देखकर डर लग रहा था कि कोई लड़ाई ना हो जाए । जैसे तैसे मैं अंदर गया ऊपर एक अंकल बड़े आराम से लेट कर सो रहे थे और नीचे कि शीट पर पूरे लोग बैठे हुए थे और बहुत सारे लोग ट्रेन में खड़े हुए थे मुझे लग ही रहा था कि चाचा विवाद का कारण बन सकते हैं क्योंकि लोग गुस्से के मूड में लग रहे थे कुछ समय पश्चात जैसे तैसे मैंने चाचा जी से बोला चाचा जी क्या आप मुझे जगह दे सकते हो वह बहुत नाराज हुए । तो मैंने वह बात को वहीं पर खत्म कर दिया बात अब बैठने की आ रही थी क्योंकि लोग परेशान हो गए थे चढ़ते चढ़ते मैंने देखा एक लगभग 6 फीट 2 इंच वाले चाचा जी आए । सो रहे चाचा जी से बोले भाई ए जनरल डिब्बा है यहां पर सोना अलाउड नहीं है तो कृपा कर मुझे जगह दे दीजिए इस पर सोने वाले चाचा भड़क उठे और बोले अगर तुमको बैठना ही है तो रिजर्वेशन करवा लिया होता इस पर 6 फुट वाले चाचा ने जवाब दिया अगर तुमको सोना है तो तुम रिजर्वेशन करवाओ ना ?
इस तरह उनका लगभग पांच 6 मिनट के विवाद चला मैं यह सब देख रहा था कुछ देर बाद मैंने देखा कि ऊपर की शीट पर एक बैग रखा हुआ है इस को हटाकर शायद मैं बैठ सकता हूं क्योंकि मैं भी समस्या का सामना कर रहा था तो मैं वहां पर बैठा फिर कुछ देर पश्चात वहां पर एक चाची जी एक बच्चे के साथ आई और बोली क्या आप मेरे बच्चे को गोद में बैठा सकते हो मैंने कहा क्यों नहीं बेशक परंतु मैं आपके छोटे बच्चे को बिठा लूंगा उन्होंने कहा ठीक है उनका बच्चा लगभग 10 12 साल का था जिसका वजन लगभग 40 किलो था मैंने उसको लगभग आधा घंटा अपने ऊपर बिठा कर रखा उसके बाद मेरा पैर बहुत जोर से दर्द करने लगा तो मैंने सोचा क्यों ना मैं इसको भी मेरी तरह ट्रांसफर कर लूं तो मैंने सामने एक बैग रखा हुआ देखा तो मुझे तुरंत समस्या का निराकरण मिल गया मैंने उस बच्चे से बोला तुम उस बैग की जगह ले लो और वह बैग मुझे दे दो मैं उसे अपनी गोद में रख लेता हूं बच्चा बहा पर आराम से बैठ गया और मुझे भी बहुत राहत मिली इस समस्या से ।
यहां पर सत्य घटना खत्म होती है।
पर पर सीखना कभी खत्म नहीं होगा
शीर्षक –
इस घटना से मुझे यह प्रेरणा मिली कि जब आपके ऊपर समस्या आएगी जब ही आप उसका निराकरण कर पाएंगे वरना आप सोच भी नहीं सकते उसके बारे में क्योंकि लोग अक्सर मुसीबत में ही अपना दिमाग इस्तेमाल करते हैं ।
इस घटना से यह प्रेरणा मिली कि समस्या है तो समाधान भी है बस जरूरत है तो उसे खोजने की । चाहे आप पहले खोज करो या बाद में यह आप पर निर्भर करता है ।
धन्यवाद आप सभी पढ़ने वालों को ?