“रूह से जिस्म तक”
तकलीफ ,मुझे भी होती हैं।
तू ना समझ मुझे, फर्क नहीं पड़ता है।
रूह से जिस्म तक ,लूटा दिया तुझपे।
तू मेरी कमिया निकाल, किसी गेर पर मरता है।
क्या इंसाफ है ,तेरी मोहब्बत का।
वादे मुझसे,और मोहब्बत किसी और से करता है।
तकलीफ ,मुझे भी होती हैं।
तू ना समझ मुझे, फर्क नहीं पड़ता है।
रूह से जिस्म तक ,लूटा दिया तुझपे।
तू मेरी कमिया निकाल, किसी गेर पर मरता है।
क्या इंसाफ है ,तेरी मोहब्बत का।
वादे मुझसे,और मोहब्बत किसी और से करता है।