रविवार
दिन छुट्टी का रवी वार को होता है न !
इसीलिए उसने इक दिन की छुट्टी ली है।
जाते-जाते सिरहाने इक बाम की डिबिया छोड़ गया है।
‘आज उसे आवाज़ न दूँ मैं’ ये कहकर मुँह मोड़ गया है।
बोल गया है बाद आज के, मुझसे हाल नहीं पूछेगा।
मैंने खाया या भूखी हूँ, एक सवाल नहीं पूछेगा।
मन भी आखिर अधिक प्यार से थकता है न !
इसीलिए उसने इक दिन की छुट्टी ली है।
उसने नहीं कहा है लेकिन, मुझको सारी बात पता है।
मुझसे रूठ गया है थोड़ा सा वो पिछली रात, पता है।
मैं ही दोषी उसकी, खुद की, कुछ भी नहीं संभाला जाता।
इतना भी मैं समझ न पाई, दर्पण नहीं उछाला जाता।
प्यार दूरियों में ही अक्सर बढ़ता है न!
इसीलिए उसने इक दिन की छुट्टी ली है।
तुम होते हो तो दुनिया में तितली जैसे उड़ लेती हूँ।
सपनों को पंखों में भरके, आसमान से लड़ लेती हूँ।
तुम्हें बताना है कि तुम बिन दिन कितना खाली लगता है।
तुम बिन खुद का होना जैसे, मुझको इक गाली लगता है।
ऐसा सुनना, सबको अच्छा लगता है न!
इसीलिए उसने इक दिन की छुट्टी ली है।
© शिवा अवस्थी