रूठना तो हमे भी आता हैं..लेकिन मनाने कहा कोई आता हैं..
रूठना तो हमे भी आता हैं..लेकिन मनाने कहा कोई आता हैं..
घुटत रही दर्द को पी रही खुद को फिर भी खुशियाँ बार-बार बांट रही हूं सबमे..अकेले में खुद ही आंसू बहाती हूं
आंसू बहाने का ही असर …रूठने का फायदा ही क्या
जो दिल की कही हुई नहीं कोई सुन पाता हैं …
रूठे धरती का प्यास बुझाने बादल भी आ जाता हैं ..
तितली और भवरो को मनाने फूल हर रोज खिल जाता हैं ..
नदियों की जिद्द पूरी करने के लिए पहाड़ भी रास्ता बना लेता हैं ..
एक हम है हमे मनाने कहा कोई आता हैं ..
फूल न हो तो भवरो का क्या काम..बिन बरसात मयूर भी हो जाता उदास..कैसा सावन जिसमे ना हो बरसात ..
जिस सावन मे न पड़े झूले उस सावन का क्या हाल..
रूठे ही क्यों हम जब कोई मनाने नहीं आता हैं..
लाख दर्द के बिच भी मुस्कुराना सीखा हमने..
फिर कभी इश्क़ नहीं करने का कसम खाई थी हमने फिर भी इश्क़ ने अपने जाल मे पिरो लिया हमें …इश्क़ मे दर्द न हो वो इश्क़ का पीर कैसा…जो इश्क ने चाह न सिखाया वो इश्क़ का जाम कैसा..
रूठना हमे भी आता हैं.लेकिन मनाने कहा कोई आता हैं.
काश कोई होता राहो में साथ निभाने वाला..रूठने से पहले ही हमे मनाता..इश्क़ मे हम भी आपका सारा जान ..करते कुर्बान पूरी जिंदगी उस पर..काश कोई तो प्यार लुटाता हम पर..
कहने से पहले ही समझ जाता ..
#स्वरा कुमारी आर्या✍️