“रुदन” गीत
(६) “रुदन”
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पुरानी याद के धुँधले कदम जब राह में आते
कसक मन में रुदन करती तुम्हें हम चाह में पाते।
ठिठुरती सर्द रातों ने जगाया स्वप्न में खोया
अगन बढ़ती गई तन की झुका पलकें बहुत रोया
भिगोया रात भर तकिया सनम को भूल ना पाते
पुरानी याद के धुँधले कदम जब राह में आते…।
कहूँ कैसे ज़माने से जुबाँ पर आज पहरे हैं
भरा है दर्द सीने में समेटे ज़ख्म गहरे हैं
कहाँ जाऊँ बता दे तू अँधेरे रात गहराते
पुरानी याद के धुँधले कदम जब राह में आते…।
ढह गए प्यार के सपने बिछे जब शूल राहों में
जली अरमान की बस्ती रहे ना फूल बाहों में
मरुस्थल बन गया जीवन मुझे अरमाँ नहीं भाते
पुरानी याद के धुँधले कदम जब राह में पाते…।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
महमूरगंज, वाराणसी (उ.प्र.)