रुख़ से परदा हटाना मजा आ गया।
रुख़ से परदा हटाना मजा आ गया।
बिजलियाँ यूँ गिराना मजा आ गया।
बात जाने न हमने क्या कह दी मगर,
देखकर मुस्कुराना मजा आ गया।
तोड़कर बंदिशें इस ज़माने की सब,
रोज मिलना मिलाना मजा आ गया।
पल दो पल के लिये रब से मांगा सुकूं,
हाथ तेरा थमाना मजा आ गया।
इश्क में हो गया हूँ मैं पागल तेरे,
कह रहा है जमाना मजा आ गया।
नींद कोसों हुई दूर मुझसे मगर,
मौत का थपथपाना मजा आ गया।
जिन किताबों में दिल को निचोड़ा कभी,
आग उनमें लगाना मजा आ गया।
एक मुद्दत हुई भूख मिटती नहीं,
माँ के हाथों से खाना मजा आ गया।
आसमां ये “परिंदा” न छू ले कहीं,
क़ैद में फड़फड़ाना मजा आ गया।
पंकज शर्मा “परिंदा”🕊