रुई रुई से बादल
सृजन कर्ता -डॉ अरुण कुमार शास्त्री – एक अबोध बालक – अरुण अतृप्त
दिनांक ९ जुलाई २०२१ सुबह ११.१ बजे
बाल झड़ जाएंगे
दांत गिर जाएंगे
याद मगर रखना
साथ गुजारे जो दिन
तुम भूल तो न जाओगे
आवाज़ दोगे कभी
हम आ तो न पाएंगे
लेकिन दिल से साथी
हम भूल तो न पाएंगे
कैसे कैसे बीते वो
प्यार भरे मंज़र
उड़ते मड़राते थे
रुई रुई से बादल
उनको छूने की चाह
अब तक भी अधूरी सी
हांथों में नमी , कोमल
तेरे चुम्बन जैसी ही
हम अब भी उन सपनों में
रहते डूबे, उतराते
बाल झड़ जाएंगे
दांत गिर जाएंगे
याद मगर रखना
साथ गुजारे जो दिन
तुम भूल तो न जाओगे
आवाज देकर बुला लो
हम उड़ कर आएंगे
कैसे कैसे बीते वो
प्यार भरे मंज़र
दिल भर भर जाएंगे