रिहाई
विभा आँखे फाड़ फाड़ कर पति सुनील को देख रही थी अट्ठाइस साल हो गए शादी को। शादी के बाद जितने कष्ट सुनील ने उसे दिये। उसके माँ बाप भाइयों को गालियां दी। उस पर हाथ भी उठाया । अपने घर वालों के आगे उसे कुछ नहीं समझा। आज तीस साल बाद अपने बेटे की आंखों में चढ़ने के लिये उसके ससुराल वालों के पैरों में पड़ा था । जबकि उन्होंने अपमान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी । प्रेम विवाह का पूरा फायदा उठा रहे थे। जिस मान सम्मान को लेकर विभा का जीना मुश्किल कर दिया था आज सब कुछ भूल गया था। उसे जितनी नफरत सुनील से हो रही थी उतना ही रोना अपनी किस्मत पर आ रहा था । ये सुनील पहले अपनी माँ बात भाई बहनों का रहा और अब बुढापे में अपने बच्चों का । उसका हुआ ही कब । कौन है उसका । बेटा भी हर कदम पर माँ को ही नीचा दिखाने पर तुला रहता है । किसके लिये जी रही है वो। बस काम करने वाली मशीन बन कर रह गई है। उसे घुटन होने लगी। इस जेल में उसका दम घट रहा था । यही सोचते 2 अपने कमरे में चली गई।दरवाजा बंद कर लिया । अचानक कुछ सोचकर आँसू पूछे।हौले से मुस्कुराई। आज कैद से आज़ाद जो होने जा रही थी। फिर एक कागज पर लिखा अपनी मौत के लिये वो खुद जिम्मेदार है। घर के किसी भी सदस्य को तंग न किया जाए । और दसवीं मंज़िल से कूद गई । डरपोक विभा को आज जरा भी डर नहीं लगा।
31-07-2019
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद