रिश्तों की सार्थकता
“रिश्तों की सार्थकता में सहवास की महत्ता”
कर्तव्यों की चीखपुकार में धुंधलाता रहा ममत्व का जीवन चक्र
कल की ही फ़िक्र में खोया रहा, हर पल मेरे आज का ज़िक्र
जब आँखें खुली तो बहुत देर हो चुकी थी, ममता सो चुकी थी
नीड़ पुराने हुए थे सूने, नयों से चूज़ों की रुखसत हो चुकी थी
मन जब कभी भी, व्याकुल होता है, यादों की बयारें चलती हैं
मन कहता है, जी हर क्षण को, ज़िंदगी कब दुबारा मिलती है
मन तो मन है, ढूंढ ही लेता है परायों में उन खोए अपनों को
अपने नही हैं अपने से तो हैं कह बहलाता है अपने सपनों को
सच तो यही है, रिश्ते कभी भी, किश्तों में नही मिला करते हैं
संग रह उन्हें निभाने के मौके किस्मतवालों को मिला करते हैं
~ नितिन जोधपुरी “छीण”