रिश्तों की सच्चाई”
रिश्तों की सच्चाई”
आजकल रिश्ते पक्के हो रहे, पगार और खुबसूरती पर,
संस्कार, गुण, तहजीब कहीं खो गए, सब देख रहे बस बाहरी कदर।।
न देखी जाती अब दिल की गहराई, न सुनी जाती दिल की आवाज़,
बस दौलत और शोहरत का है दौर, न समझते रिश्तों की सही मायाजाल।।
जिन्हें माना था हमने बेशकीमती, वो रिश्ते भी टूट रहे हैं,
क्योंकि तहजीब और संस्कार से, अब रिश्ते ना जुड़ रहे हैं।।
पैसे की चमक में दिल की बातों का अब मोल कहाँ?
शादियों का तमाशा बना दिया, प्रेम को बस खेल समझा।।
मगर वो रिश्ते जो बनते थे सच्चाई से,
आज उनकी खोज में हम भटक रहे हैं हर गली से।।
क्योंकि जिन्दगी की राहों में, अंततः वही सफल है,
जिन्होंने संस्कार और तहजीब को साथ रखा है।।
तो रिश्तों को समझो, पैसे और स्टेटस से ऊपर,
क्योंकि असल खुशी मिलती है, जब दिल से हो रिश्ते जुड़े हुए।।