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16 May 2017 · 1 min read

रिश्तों की वह डोर

मैने खुद ही तोड दी,.रिश्तों की वह डोर!
लगी स्वार्थ वश जो मुझे,क्षीण और कमजोर!

निर्बल दुर्बल हो रहे,ताकतवर बलवान !
लोकतंत्र की देश मे,यह कैसी पहचान! !

अँधा हो कानून जँह, बहरी हो सरकार!
निर्बल की सुनता नही,कोई वहाँ पुकार! !
रमेश शर्मा.

Language: Hindi
1 Like · 251 Views
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