रिश्तों की रिक्तता
रिश्तों की रिक्तता
आज के दौर में रिश्तों में संस्कारों की रिक्तता
है,
अपनेपन की कमी ने रिश्तों को बेरंग कर दिया है।।
बड़े-बुजुर्गों का सम्मान नहीं होता है,
बच्चों के प्रति माता-पिता का प्यार नहीं होता है।।
पति-पत्नी के बीच विश्वास नहीं होता है,
भाई-बहन के बीच प्रेम नहीं होता है।।
रिश्तों में केवल स्वार्थ की भावना रह गई है,
दया, करुणा, और सहानुभूति समाप्त हो गई है।।
इस कारण रिश्तों के भीतर का सुकून समाप्त हो गया है,
सम्मान, मर्यादा, और संस्कार शून्य हो गए हैं।।
रिश्तों को बचाने के लिए हमें संस्कारों को पुनर्जीवित करना होगा,
अपनेपन की भावना को जागृत करना होगा।।
बड़े-बुजुर्गों का सम्मान करना होगा,
बच्चों के प्रति माता-पिता का प्यार करना होगा।।
पति-पत्नी के बीच विश्वास रखना होगा,
भाई-बहन के बीच प्रेम रखना होगा।।
स्वार्थ की भावना को त्यागना होगा,
दया, करुणा, और सहानुभूति को अपनाना होगा।।
तो ही हम अपने रिश्तों को बचा सकते हैं,
और उनमें सुकून, सम्मान, और मर्यादा ला सकते हैं