रिश्तों की बगिया
जब लड़ाई अपनों से हो, हार भी तो जीत है,
रिश्तों की इस बगिया में, प्रेम की ये रीत है।
जीत क्या, जो दिलों को, दूरियाँ दे जाए,
हार वही सच्ची जो, नजदीकियां बढ़ाए।
हारना तब आवश्यक, जब प्यारे हों सामने,
मन में हो सच्चा स्नेह, और दिल में हो यामने।
जग की जीत से बढ़कर, अपनापन जो पाया,
रिश्तों की मीठी धूप, जीवन का साया।
हारकर भी जो जीते, वही सच्चा वीर है,
अपनों के लिए झुकना, प्रेम की जागीर है।
अपनों से लड़कर जीता, वह कैसा अभागा,
हार में भी जो जीते, वही सच्चा भागा।
रिश्तों की इस बगिया में, प्रेम का हो फूल,
हार में भी जीत है, ये जीवन का उसूल।
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