रिश्तों का खेल
रिश्तों का खेल
रिश्ते अब पक्के होते हैं, बस दौलत और पगार पर,इंसान का किरदार, तहज़ीब हो गए कहीं पार।
लड़कों के रिश्ते बनते हैं, बस उनके काम से,लड़कियों के रिश्ते ठहरते हैं, बस उनकी खूबसूरती के नाम से।।
संस्कार, गुण, तहजीब, अब पूछता कौन है,सब देख रहे हैं बस, कितनी मोटी जेब में नोट है।
जहाँ रिश्ते पैसे पर टिके, वहाँ सच्चाई खो जाती है,जलालत और बेइज्जती, वहां रोटी तोड़ जाती है।।।
स्टेटस और शोहरत के पीछे दौड़ में,रिश्ते हो गए हैं सिर्फ़ दिखावे के।
नहीं देखता कोई दिल की गहराई,बस बाहरी चमक-धमक से सजी हुई अंगनाई।।
प्रेम अब बन गया है एक मज़ाक,शादियाँ बस तमाशा, जैसे बाज़ार में सजी हुई दुकान।
संस्कारों की जगह, अब दौलत की तमीज़ है,रिश्ते आज के दौर में, बनते हैं बस एक खेल।।
फिर चाहे जितना भी पैसा खर्च करो,रिश्तों में दिखावा, दिल से उतर जाते हैं।
तेहज़ीब और संस्कार, हैं रिश्तों की सच्ची धरोहर,बिना इन के, प्रेम और शादियाँ बस बन जाते हैं एक बोझ।।
इसलिए रिश्तों को बनाओ तहज़ीब से,तभी वो खिलेंगे हर मौसम में, प्यार और इज़्ज़त की फिज़ा में।।
संस्कारों की बुनियाद पर जो रिश्ते टिकते हैं,वो ही जीवन भर साथ देते हैं, सुख-दुख के हर सफर में।।