रिश्ते
घर में करता बाप जहां बच्चों के बीच दलाली होगा।
धीरे धीरे घर का कुनबा एक एक कर खाली होगा।।
बच्चों की तुम बात ही छोड़ो, रहेगा वहां पिता ही।
सब रिश्ते जल भुन जायेंगे, जलेगा पिता चिता भी।।
माता अगर छुपाएगी कि उसका बच्चा चोर नहीं है।
एक दिन खुद ही सुन लेगी, कि असली चोर वही है।।
शर्म हया मां में होगी ही, सुनकर कैसे वो रह पायेगी।
वो तो मस्त मलंग जिएगा, लेकिन मां फिर मर जाएगी।।
घर का बड़ा चोर यदि होगा, तो छोटा डकैत ये तय है।
हुए अगर दो से ज्यादा तो, हो सब लठैत निश्चय है।।
बहनें यदि होंगी तो, इज्जत घर की उनसे ही होगी।
घर के इज्जत खातिर वो बेचारी दुख सहन करेंगी।।
ऐसा ही है लगभग जीवन,इस भारत में गांवों का।
झेल रही दुर्दशा सदी से, है निर्मम दुख मांओं का।।
बीड़ा अगर उठा रखा है, कुछ भी यहां बदलने का।
दौलत की है नही ये “संजय”, बात है जीने मरने का।।
जय हिंद