रिश्ते
जब मन भारी हो जाता है।
नयन समंदर हो जाता है।
टूटे स्वप्न सताते तब हैं।
रिश्ते साथ निभाते कब हैं।
कौन कहाँ तक साथ है चलता।
साथ वक़्त हर कोई बदलता।
लोग राह नई पाते जब हैं।
रिश्ते साथ निभाते कब हैं।
जन्म जन्म के वादे करते।
हाथ पकड़ संग संग है बढ़ते।
बीच राह खो जाते सब हैं।
रिश्ते साथ निभाते कब हैं।
मुट्ठी बांध अकेले आते।
झूठे बंधन मे खो जाते।
खोल के मुट्ठी जाते सब हैं।
*रिश्ते साथ निभाते कब हैं।