रिश्तों का महल
परायों से क्या शिकायत करूं दिल तो अपनों से घबराता है ।
रिस्तों की चादर पर ना जाने कब नमक चढ़ जाता है ।।
शिकायते करते रहते हम कि उन्हें रिश्तों की कद्र नहीं ।
बस इसी गलतफहमी में रिश्तों का महल बिखर जाता है ।।
परायों से क्या शिकायत करूं दिल तो अपनों से घबराता है ।
रिस्तों की चादर पर ना जाने कब नमक चढ़ जाता है ।।
शिकायते करते रहते हम कि उन्हें रिश्तों की कद्र नहीं ।
बस इसी गलतफहमी में रिश्तों का महल बिखर जाता है ।।