रिश्ते
रिश्ते
माँ को अग्नि देते हुए बिंदु को लगा, आज जो वह अनुभव कर रही है, उसे सिर्फ़ सिंधु ही समझ सकती है, और यह सिर्फ़ महीना भर पहले की बात है जब वह सोचती थी, मर जायेगी पर सिंधु के घर नहीं जायेगी ।
बिंदु और सिंधु दोनों जुड़वां बहनें हैं, पर दिखने में एकदम विपरीत, सिंधु गोरी है तो बिंदु साँवली, सिंधु पाँच फुट तीन इंच है तो, बिंदु पूरी छ फुट, सिंधु पढ़ने में अच्छी थी और डाक्टर बन गई, बिंदु का सारा ध्यान खेल कूद में था और उसने राष्ट्रीय स्तर पर टेनिस खेला । ये दोनों बहनें एक ही घर में एक साथ बड़ी हुई, परन्तु इनके संबंध कभी ऐसे नहीं रहे जैसे प्रायः बहनों के होते हैं ।
सिंधु माँ के साथ ज़्यादा रहती तो बिंदु पापा के साथ, दोनों की शादियाँ हो गईं और ऐसा बहुत कम होता कि दोनों एक साथ कार्यक्रम बनाकर मायके आती, और कभी इकट्ठे हो भी जाती तो जैसे खिंची खिंची रहती ।
फिर एक दिन माँ की बीमारी की खबर आई, दोनों अपनी समस्त व्यस्तताओं को छोड़कर माँ के पास आ गई, पहली बार दोनों में बहनापा पनपा , खाना क्या बनाना है से लेकर माँ के इलाज का अगला कदम क्या होना चाहिए दोनों इस पर एक साथ विचार करतीं । माँ धीरे धीरे जा रही थी और यह दोनों एक दूसरे का हाथ पकड़े , मज़बूत बनकर खड़ी थी । जब डाक्टर ने मृत घोषित किया तो दोनों पापा को लिपटकर एक साथ रोई थी, उस रुदन में सारे गिले शिकवे स्वतः घुल गए थे ।
तेरहवाीं के बाद बिंदु ज़िद्द करके पापा को अपने साथ ले आई थी , कभी कभार फ़ोन करने वाली बिंदु अब सिंधु को कई बार दिन में दो बार भी फ़ोन कर लेती थी ।
एक दिन वह शाम को पापा के साथ बालकनी में बैठकर शाम की चाय पी रही थी कि पापा ने कहा, “ मुझे बहुत ख़ुशी है कि अब तुम दोनों बहनें क़रीब आ गई हो। “
सुनकर बिंदु को हैरानी हुई, तो क्या यह बात पापा जानते थे !
“ तुम्हारी माँ की एक बहुत ग़लत आदत थी, तुम दोनों में हमेशा तुलना करना, उसे सिंधु अधिक काबिल लगती थी, क्योंकि वह उसके सपनों को पूरा कर रही थी, तुम्हारे गुण वह समझ ही नहीं पा रही थी । “
“ क्या कह रहे हैं आप पापा । “
“ ठीक कह रहा हूँ और तुम्हें इसलिए बता रहा हूँ ताकि तुम वह भूल न करो जो तुम्हारी माँ ने की थी, वह भी जो कर रही थी अन्जाने में कर रही थी, तुम्हारे भी दो जुड़वां बेटे हैं, उन्हें सँभलकर पालना । “
“ मैं तो उनमें कभी तुलना नहीं करती । “
“ तो अच्छी बात है। “
“ आपको यदि लगता था कि माँ का इस तरह तुलना करना ठीक नहीं है तो आपने उन्हें रोका क्यों नहीं ? “
“ कई बार रोका, पर वह इस बात को कभी स्वीकार ही नहीं कर पाती थी कि वह तुलना करती है। दरअसल आप अपने बच्चों के साथ वैसा व्यवहार करते हो जैसा आपको मिला होता है, इस क्रम को तोड़ने के लिए बहुत संवेदना और समझदारी की ज़रूरत होती है, जिसे विकसित करने का तुम्हारी माँ को पूरा अवसर नहीं मिला, वह यह सब अर्धचेतन मन के स्तर पर ही करती रही, वह एक धीमी आँच का धुआँ था , जिसे फैलना ही था । जब उसे नहीं समझा पाया तो मैंने तुम्हें अपने साथ रखना आरम्भ कर दिया ताकि इसका दुष्प्रभाव कम किया जा सके, हरेक बच्चे का पहला प्यार उसकी माँ होती है, तुम्हारा उस पर तो कोई बस नहीं था, तुमने सिंधु से खिंचना शुरू कर दिया, वह जितना तुम्हारे पास आती तुम उसको उतना परे ढकेलती । वक़्त के साथ वह माँ के ज्यादा क़रीब होती गई और तुम अपने आपको ढूँढने में लग गई, तुम्हें ग़लत आदतें न लग जायें इसके लिए मैं बहुत सतर्क रहता था, भगवान की दया से तुम्हें प्यार करने वाला अच्छा हमसफ़र मिल गया और मेरी चिंता कम हुई ।”
बिंदु बचपन से पापा से घंटों बातें करती रही है, जब उसे पहली बार मासिक धर्म हुआ था तो पापा उसे लंबी सैर पर ले गए थे और वह सारा रस्ता बोलती रही थी, जब माधव ने शादी का प्रस्ताव रखा था तो वह पूरी रात पापा के साथ बैठकर बातें करती रही थी ,और जब उसके जुड़वां हुए थे तो माँ के साथ पापा भी पूरी देखभाल कर रहे थे, फिर भी, पापा कभी वो कहेंगे जो उसे जीवन भर चुभता रहा है, इसकी उम्मीद उसे नहीं थी ।
“ थैंक्यू पापा “ उसने नम आँखों से कहा ।
“ तुम्हारी माँ तुमसे बहुत प्यार करती थी, जब तुम फ़ोन नहीं करती थी या सिंधु से बात नहीं करती थी तो तुम्हारी माँ के आंसू नहीं रूकते थे ।”
“ जानती हूँ पापा, फिर भी सैंस आफ रिजैक्शन कभी कम नहीं होता था ।”
“ जानता हूँ इसलिए कह रहा हूँ माँ को माफ़ कर दो और अगली पीढ़ी पर इसका असर मत होने दो । “
“ मैंने माफ़ कर दिया पापा, उनके आख़िरी दिनों में लगा, सिंधु और मेरा दर्द एक ही है, कहीं न कहीं उसे लगता है कि आपने उसे कम वक़्त दिया है। “
“ जानता हूँ मैं, यह असुंतलन तो होना ही था, “ फिर थोड़ा रूक कर कहा , “वक़्त रहते मुझे वह ठीक करना है। “
“ आप इन सब बातों को इतनी आसानी से कैसे समझ गए पापा, मनोवैज्ञानिकों के हिसाब से तो पुरूषों में स्त्रियों की अपेक्षा सहानुभूति कम होती है। “ बिंदु ने मुस्कराकर कहा।
पापा हंस दिये, “ वो तो मुझे पता नहीं, पर हम भाई बहन जैसे जैसे बड़े हो रहे थे, हमारे संबंध बदल रहे थे, और मैं समझ रहा था, हमारे रिश्तों की नींव हमारे माँ बाप ने बचपन में ही रख दी थी, अब वह सिर्फ़ आकार ले रहे थे , तुम्हारी माँ से जब मैं मिला तो इतना तो साफ़ हो गया कि अपने प्रति हो गए अन्याय को शायद वह पूरी तरह क्षमा नहीं कर पाएगी ।”
माँ को याद करके उन दोनों की आँखें भीग रहीं थी , और इसका एक ही इलाज था सिंधु को फ़ोन करके दिल खोलकर बातें करना ।
शशि महाजन- लेखिका
Sent from my iPhone