रिश्ते वहीं बनते है जहाँ विचार मिलते है
दोस्तों,
एक ग़ज़ल आपकी मुहब्बतों के हवाले,,
ग़ज़ल
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रिश्ते वहीं बनते है जहाँ विचार मिलते है
विचार नही, वहाँ फ़कत दीदार मिलते है।
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तुम्हे जो करना था कर लिया न बरखुर्दार,
इस जहाँ में,देख सदा तलबगार मिलते है।
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कब्र तो बहुत खोदी थी तुमने,गिरा कौन,
अब तूँ भी देख कैसे दो किरदार मिलते है।
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पंचो की मंडली में तेरी हरकत नज़र आई,
अफसोस हुआ देख,कैसे गद्दार मिलते है।
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कद्दर तेरी बहुत हुई, कभी जानिब से मेरी,
मगर आज तुम जैसे मुझे हजार मिलते है।
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अच्छा हुआ असलियत जान गया “जैदि”,
कि हयात में कैसे संग-ओ-ख़ार मिलते है।
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शायर:-“जैदि”
डॉ.एल.सी जैदिया “जैदि”