रिश्ते रिस रहे हैं
बहुत से लोग सोचते हैं कि लोगों से मिलना जुलना एक फ़ालतू इंसान की निशानी है बल्कि मैं मानती हूं आजकल रिश्ते रिस रहे हैं..किसी के पास एक दुसरे से मिलने जुलने का वक्त ही नहीं है..पहले छुट्टियां होते ही अक्सर दादी नानी बुआ के घर जाकर रहना बहुत सुखद लगता था और आजकल तो हमारी दिनचर्या या समय की कमी कहिये..वक्त ही नहीं रहा एक दुसरे से मिलने का..दुःख दर्द की तो क्या बातचीत करें आपस में..काम की बातें हों जाएँ तो वो भी गनीमत हैं..आजकल एक दुसरे से आगे बढ़ने की जो प्रतिस्पर्धा बढ़ गयी है..घर के सभी सदस्य जॉब करते हैं ऐसे में एक दुसरे के लिए वक्त कहाँ..पैसा पद और प्रतिष्ठा ज़रूरी है पर रिश्तों को निभाना भी उतना ही ज़रूरी है..हमारी असली सफ़लता तभी है जब हमारा नाम सुनते ही लोग हमारी बुराई न करके एक खुशी महसूस करें.लोगों से मिलने का मतलब एक दूसरे की बुराई करना नहीं.एक दूसरे के सुख दुख में शामिल होना है.उनके चेहरे पर मुस्कुराहट लाना है..हमारे अपने बस चाहते हैं एक परवाह.ज़िंदगी को सकारात्मक बनाने की कोशिश की जानी चाहिए..लोगों को हमें बुरा और गलत समझना है तो समझें ..सबकी अपनी अपनी सोच है..हम सबके लिये अपने आपको अच्छा साबित नहीं कर सकते..बस अपनी सोच और दृष्टिकोण स्वस्थ रखनी ज़रूरी है..ज़िंदगी की राहों में चलते चलते अक्सर हमारा चुलबुलापन और मुस्कुराहट कहीं खो जाता है..बोरियत सी होने लगती है..खुद भी मुस्कुराते रहिये औरों को भी मुस्कुराने की वज़ह दीजिये…
*हँसते रहिये खिलखिलाते रहिये ..
ज़िंदगी की राहों में..बस भँवरे सा
गुनगुनाते रहिये और तितली सा रंग
बिखेरते रहिये..बस मुस्कुराते रहिये…*
© अनुजा कौशिक ?