रिश्ता
किस लिए निहार रही हूं इस तस्वीर को,
आखिर क्या ही दिया है इन्होंने, फिर भी वही भाव, वही अपनापन, चाह कर भी दूरी नहीं बना पाती। सब कुछ छीन लिया मेरा, मेरे परमेश्वर, बच्चे,रिश्ते नाते यहां तक की खुद को भूलने लगती हूं, कुछ समझ में तो आए आखिर क्या गलती की थी मैंने,जो इस अभागिन को इतना कुछ सहना पड़ रहा है। लेकिन तुम्हारे लिए मेरा यह भक्ति रस खत्म होने का नाम तक नहीं लेता।
एक समय था।
जब सारा घर तुम्हारे लिए सब कुछ मानता हुआ दिन की शुरुआत करता, कोई ऑफिस तो कोई स्कूल के लिए तैयार होता,बस रह जाती मैं,जिसको सबसे आखिर में तुमसे बातें करने का समय मिल पाता, परमेश्वर तो चल बसे,बच्चे भी भाग दौड़ की जिंदगी में व्यस्त हो गए। बच्चों के भी बच्चे हो गए, दिखावटी ज़िंदगी जीने को वो कब मजबूर हो गए उन्हें खुद पता ही नहीं चल पाया।
बड़ा बेटा इसी घर में हुआ था,कितनी धूम धाम से परमेश्वर ने सारे मोहल्ले में गुड़ के लड्डू बटवाए, डोल बजवाए,कुछ दिन तो ऐसा लगता रहा मानों आप स्वयं मेरे घर पधारे हो।
अब कौन है? कोई भी नहीं, बेटों की शादियां हो गई,बेटी पराया धन बन गई, बढ़ते रिश्ते पुराने रिश्तों पर हावी हो गए।
आखिर इस अवस्था में, मैं कौन हूं? बताओ, तुम ही बता दो,ना जाने कितने समय से तुम ही तो हो बस जिससे बातें कर पा रही हूं,
तुम्हें घर के अंदर ले जाने का मन भी नहीं करता कहीं तुम भी मुझे दूर जाने का आदेश ना दे दो,अकेला छोड़ देने को बाध्य ना कर दो, आखिर कोई तो है मेरे पास जिसके साथ इस देहरी पर बैठ बातें कर पाती हूं।
बस तुम्हीं मेरे लिए साधन और साध्य रह गए हो, तुम्हें अकेला नहीं देखा जाता ना मैं तुम्हारे बिना अकेली रह पाती हूं।
सब कुछ समय के साथ बीत गया लेकिन यह हमारा रिश्ता अमर रहेगा भले मैं रहूँ या बीत जाऊं इस समय के बहाव में।
साक्षी रहेगा समय हम दोनों के लिए।