रिश्ता
तुझे लिखती हूं तो मेरी उंगलियां भी धड़कने लगती है।
सांसों का ही नहीं, तुझसे नसों का भी रिश्ता है,
जिसमें तेरे ही प्रेम का लाल रंग, रक्त बन बहता है।
होता होगा लोगों का ऐसा रिश्ता जो मिलने पर दिल धड़कने लगता हो।
मेरा तो तुम से आत्मा का रिश्ता है जिसमें प्राण बसते है,
जो मिलने पर मन भी रक्ताभ कर देता है और आत्मा थिरकने लगती है।
© डा० निधि श्रीवास्तव ‘सरोद’