रिश्ता-ए–उम्मीद
रिश्ता वो बिगडा कभी,होता नही बहाल ।
करते हों मध्यस्थता, जिसमे कई दलाल ।।
तोड़ दिया हमने स्वयं, रिश्ता-ए–उम्मीद ।
करते थे जिसके लिए,दिल से हम ताकीद।।
रमेश शर्मा.
रिश्ता वो बिगडा कभी,होता नही बहाल ।
करते हों मध्यस्थता, जिसमे कई दलाल ।।
तोड़ दिया हमने स्वयं, रिश्ता-ए–उम्मीद ।
करते थे जिसके लिए,दिल से हम ताकीद।।
रमेश शर्मा.