राह तके ये नैन
राह तके ये नैन
तेरे इश्क ने तड़पने को किया बड़ा मज़बूर,
रहेगा हमेशा इस दिल में हूर तेरा ही नूर,
तूने अखियों से क्या पिलाई,
उतरा नहीं तेरे इश्क का सुरुर।
नहीं भुला पाऊंगा इश्क-ए-वारिश की बौछार को।
राह तके ये नैन, आज भी तेरे दीदार को।।
खाबों में तू सदा वफा कर जाती है,
वो तो नींद बेवक्त दगा कर जाती है,
तेरी मुहब्बत की यादों में है ऐसी कशिश,
आज भी दिल को फना कर जाती है।
बेकरार है नैन मेरे तेरे नेन से मिलनसार को।
राह तके ये नैन, आज भी तेरे दीदार को।।
दिल को जाम से सी रहा हूँ,
दर्द के घूँट आज भी पी रहा हूँ,
कत्ल तो किया था तूने उस ज़माने में,
और आज मर-मर के जी रहा हूँ।
ठुकरा नहीं सकता उस इश्क की बहार को।
राह तके ये नैन, आज भी तेरे दीदार को।।
दूर हो जाते तब तो दिल के अंधेरे,
गर तुम समझ जाती प्यार के लफ्ज़ मेरे,
आज भी तेरे इश्क की खुशबू ,
हर पल आती है ज़हन से मेरे।।
नहीं भूल सकता ‘भारती’ उस इश्क की मार को।
राह तके ये नैन, आज भी तेरे दीदार को।।
सुशील भारती, नित्थर, कुल्लू (हि.प्र.)